डा. लोकेश शुक्ल कानपुर 9450125954
भारत के संविधान, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, स्त्रोत व वर्गीकरण |
सामान्य परिचय व प्रस्तावना ।
भारत का संविधान एक जैविक कानून है। यह उन नियमों और कानूनों को निर्धारित करता है जो सरकार, निगमों, संगठनों और संप्रभु राज्य के नागरिकों के लिए आधार है। भारत के संविधान की प्रस्तावना मे अकिंत है कि हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को न्याय, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा, उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढाने के लिए, दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई0 को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं। हमारा राष्ट्र आरम्भ से लम्बी गुलामी व ब्रिटिश शासन के नियंत्रण में 200 साल की यातनाओ के बाद 15 अगस्त 1947 को आजाद घोषित करते हुये संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि ।
ब्रिटिश सरकार ने स्वप्रख्यापित अत्याधिक दमन और उत्पीड़नकारी नियम, कानून और अधिनियम के साथ 200 से भी अधिक वर्षों तक शासन किया। जो निम्न है
भारत सरकार अधिनियम 1858 ।
ब्रिटिश क्राउन द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी से भारत पर आधिपत्य किया तो संसद ने ब्रिटिश सरकार के प्रत्यक्ष नियंत्रण लिए पहला अधिनियम पारित किया जो राष्ट्रीये प्रबंधन में शाही नियंत्रण था। इस अधिनियम के अनुसार, रॉयल की शक्तियों का उपयोग पंद्रह सदस्यों की एक परिषद द्वारा भारत के सचिव द्वारा किया जाना था, परिषद में रॉयल व इंग्लैंड के नागरिक और ईस्ट इंडिया कंपनी के निदेशकों के एजेंट थे। राज्य सचिव जो ब्रिटिश संसद के प्रभारी थे ने गवर्नर-जनरल के माध्यम से भारत का प्रशासन किया । इस अधिनियम की महत्वपूर्ण विशेषताएं निम्न थीं।
कंपनी की सरकार अलग थी और अपरिवर्तनीय रूप से केंद्रीकृत थी। देश का प्रशासन प्रांतों में विभाजित था, प्रत्येक राज्य का प्रमुख लेफ्टिनेंट गवर्नर होता था, जिसे कार्यकारी परिषद द्वारा सहायता प्रदान की जाती थी। प्रांतीय सरकारें भारत सरकार की प्रतिनिधि थीं और प्रांत सरकार को संबंधित गवर्नर-जनरल के प्रभार और नियंत्रण के अधीन कार्य करना पड़ता था। कार्यों का कोई पृथक्करण नहीं था। प्रशासन और नौकरशाह जनता के प्रति संवदनशील व जवाबदेह नही थे।
भारतीय परिषद अधिनियम 1861 ।
इस अधिनियम द्वारा शासकीय प्रणाली में कुछ गैर-अधिकारियों को भी शामिल किया जाना था। लेकिन नए अधिनियम के अधिनियमित होने के बाद भी मुख्य और अधिक महत्वपूर्ण शक्तियां गवर्नर-जनरल के पास सुरक्षित थी विधेयकों को पूर्वोक्त स्वीकृति प्राप्त करन के बाद विधान परिषद में प्रस्तुत किया जा सकता था।
विधेयक पारित होने के बाद उन पर वीटो लगाना या क्राउन के विचारार्थ प्रस्तुत किया जा सकता था। ।
भारतीय परिषद अधिनियम 1892 ।
भारतीय और प्रांतीय विधान परिषदों में दो सुधार भारतीय परिषद अधिनियम, 1892 द्वारा प्रस्तुत किए गए थे ।
- भारतीय विधान परिषद के आधिकारिक सदस्यों को बंगाल चैम्बर और विधान परिषदों और गैर-सरकारी सदस्यों को कुछ स्थानीय निकायों जैसे विश्वविद्यालयों, जिला बोर्डों, नगर पालिकाओं द्वारा नामित किया जाना था ।
- परिषदों को राजस्व और व्यय के वार्षिक विवरण पर चर्चा करने का अधिकार था।
ऐसे अन्य अधिनियम भी हैं एक के बाद एक लागू किये गये और नागरिकों तथा गैर-सरकारी सदस्यों के लिए विस्तारित किया गया था।
भारतीय परिषद अधिनियम 1909 ।
लॉर्ड मॉर्ले और वायसराय लॉर्ड मिंटो सुघार द्वारा गैर-सरकारी सदस्यों और चुनावों के व्यापक प्रतिनिधित्व का तत्व शामिल गया था । मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड रिपोर्ट द्वारा प्रख्यापित भारत सरकार अधिनियम 1919 संवैधानिक विकास था क्योंकि मॉर्ले-मिंटो सुधार राष्ट्रवादियों की अपेक्षाओ के अनुरुप नही था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 1885 में स्थापना के साथ उदारवादी विचार की थी जिसने प्रथम विश्व युद्ध के साथ होम रूल आंदोलन शुरू कर दिया था । राष्ट्रवादियों द्वारा असहयोग आंदोलन के बाद अंग्रेजों ने साइमन कमीशन की स्थापना की थी । सभी सुधारों, अधिनियमों या संशोधनों के बाद भी ब्रिटिश क्राउन ने अपना अधिकार हमेशा सर्वोच्च रखा। लेकिन तमाम सुधारों, बदलावों, शहादतों, यातनाओं के बाद भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 प्रख्यापित किया गया था। इसके परिणाम निम्न रहे ।
- भारतीय निर्भरता और ब्रिटिश क्राउन की आधिपत्य का उन्मूलन ।
- डोमिनियन विधानमंडल की संप्रभुता समाप्त ।
- संविधान का निर्माण
संविधान सभा विशुद्ध भारत के लिए चुनी गई थी ने अपनी विभिन्न बैठकें द्वारा अंततः 26 नवंबर, 1949 को इसे पारित घोषित किया था।
भारत के संविधान के स्रोतो मे विभिन्न देशों के सैवैधनिक विशेषताए याजित की गई थीं।
- भारत सरकार अधिनियम 1935 द्वारा संघीय योजना, राज्यपाल का कार्यालय, न्यायपालिका, लोक सेवा आयोग, आपातकालीन प्रावधान और प्रशासनिक विवरण।
- ब्रिटिश संविधान द्वारा सरकार की संसदीय प्रणाली, विधि का शासन, विधायी प्रक्रिया, एकल नागरिकता, कैबिनेट प्रणाली, विशेषाधिकार रिट, संसदीय विशेषाधिकार और द्विसदनीय प्रणाली।
- अमेरिकी संविधान द्वारा मौलिक अधिकार, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, न्यायिक समीक्षा, राष्ट्रपति पर महाभियोग, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाना और उपराष्ट्रपति का पद।
- आयरिश संविधान द्वारा राज्य के नीति निदेशक तत्त्व, राज्यसभा के लिए सदस्यों का मनोनयन और राष्ट्रपति के चुनाव की विधि।
- कनाडाई संविधान द्वारा मजबूत केंद्र के साथ संघ, केंद्र में अवशिष्ट शक्तियों का निहित होना, केंद्र द्वारा राज्य के राज्यपालों की नियुक्ति और सर्वोच्च न्यायालय का सलाहकार क्षेत्राधिकार।
- ऑस्ट्रेलियाई संविधान द्वारा समवर्ती सूची, व्यापार, वाणिज्य और अंतर्व्यापार की स्वतंत्रता, और संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक।
- जर्मनी का वाइमर संविधान द्वारा आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों का निलंबन।
- सोवियत संविधान (वर्तमान में रूस) द्वारा प्रस्तावना में मौलिक कर्तव्य और न्याय का आदर्श (सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक)।
- फ्रांसीसी संविधान द्वारा गणतंत्र और प्रस्तावना में स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुत्व के आदर्श।
- दक्षिण अफ्रीकी संविधान द्वारा संविधान में संशोधन और राज्य सभा के सदस्यों के चुनाव की प्रक्रिया।
- जापानी संविधान द्वारा विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया ।
संविधानों का वर्गीकरण ।
- विकसित एवं अधिनियमित संविधान
- कानूनी और वास्तविक संविधान
- लिखित और अलिखित संविधान
- लचीला और कठोर संविधान
- विकसित और अधिनियमित संविधान
- संघात्मक संविधान
- एकात्मक संविधान
विकसित एवं अधिनियमित संविधान ।
विकसित संविधान ऐतिहासिक विकास का परिणाम होता है। यह किसी विशेष समय पर नहीं बनाया जाता। ब्रिटिश संविधान किसी विशेष संविधान सभा द्वारा किसी विशेष समय पर पारित नही किया गया है या शासक ने इसे लोगों को सौंपा है। इंग्लैंड मे मूल रूप से आज भी लगभग पूर्ण राजतंत्र है परन्तु व्यवहार में वह भिन्न है । अधिनियमित संविधान एक विशेष समय पर बनाए जाते हैं, जैसे अमेरिकी संविधान स्वतंत्रता की घोषणा के बाद संविधान सभा द्वारा बनाया गया था। फ्रांस में पहला संविधान 1830 में बना, दूसरा 1848 में बना, तीसरा 1871 में बना, चैथा 1946 में बना और पांचवां 1958 में बना। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, भारत का नया संविधान 26 नवंबर 1949 को पूरा हुआ और 26 जनवरी 1950 को लागु किया गया था ।
कानूनी और वास्तविक संविधान ।
संविधान के विभिन्न घटक कानूनी संविधान का निर्माण करते हैं और जब इसमें न्यायालय के निर्णय और समझौते योजित कर दिए जाते हैं तो यह वास्तविक संविधान बन जाता है।
लिखित और अलिखित संविधान ।
डॉ. गार्नर के अनुसार विकसित और अधिनियमित संविधान में लिखित और अलिखित संविधान के समान ही अंतर होता है। अलिखित वह संविधान होता है, जिसका अधिकांश भाग लिखित नहीं होता जैसे निर्णय, कानूनी निर्णय, रीति-रिवाज आदि।
लचीला और कठोर संविधान ।
लचीला संविधान वह होता है जिसे साधारण कानून के प्रयोग द्वारा संशोधित किया जा सकता है। जबकि कठोर संविधान वह होता है विशेष प्रक्रिया द्वारा ही संशोधित किया जा सकता है।
संघात्मक संविधान ।
संघात्मक संविधान मे केन्द्र और राज्य अपने अपने मामलो मे पूरी तरह से स्वतन्त्र होते है केन्द्र का राज्यो के मामलो मे हस्ताक्षेप नही होता है जो सयुक्त राष्ट्र अमेरिका, आस्ट्रेलिया, कनाडा तथा भारत मे प्रभावी है ।
एकात्मक संविधान ।
एकात्मक संविधान मे केन्द्र सर्वशक्तिशाली होता है तथा राज्य केन्द्र के दिशा र्निदेशो के अनुरूप कार्य करता है । राज्यो का अपना अलग अलग कोई आस्तित्व नही होता है अर्थात राज्य पूरी तरह से केन्द्र पर आश्रित रहते है ।
निष्कर्ष ।
संविधान अलग-अलग रूपों या आकारों में होता है यह राज्य के सभी नियमों और विनियमों के लिए एक अभिभावक के रूप में कार्य करता है। यह नागरिकों को दिए गए अधिकारों और कर्तव्यों के आधार के रूप में कार्य करता है। सामन्यता यह नागरिको, कार्यपालिका, विधायिका व न्यायपालिका के मध्य कडी का कार्य निष्पादित करता है ।