लोकसभा संरचना व शक्तियां ।

डा. लोकेश शुक्ल  कानपुर 945012595




संरचना

  • यह निचला सदन या पहला सदन या लोकप्रिय सदन है और सम्पूर्ण राष्ट्र के नगरिको का प्रतिनिधित्व करता है।
  • लोकसभा की अधिकतम संख्या 550 निर्धारित की गई है जिसमें से 530 सदस्य राज्यों और 20 केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधि होंते है ।
  • लोकसभा की वर्तमान सदस्य संख्या 543 है जिसमें से 530 सदस्य राज्यों का और 13 केंद्र शासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • पूर्व मे राष्ट्रपति महोदय ने एंग्लो.इंडियन समुदाय से दो सदस्यों को नामित करते थे लेकिन 95 वें संशोधन अधिनियम, 2009 द्वारा यह प्रावधान केवल 2020 तक वैध रहा।
  • लोकसभा के सदस्यो का चुनाव राज्यों के प्रतिनिधियों को राज्यों के क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों से लोगों द्वारा सीधे चुना जाता है।
  • केंद्र शासित प्रदेश मे प्रत्यक्ष चुनाव अधिनियम 1965 द्वारा केंद्र शासित प्रदेशों से लोकसभा के सदस्यों को प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा चुना जाता है

शक्तियां

लोकसभा के महत्वपूर्ण कार्यों में संसद द्वारा बनाए गए कानूनों को लागू करने के लिए मिलकर काम करने वाले व्यक्तियों का समूह कार्यपालिका का चयन करना है,। 

  • लोकसभा मंत्रिपरिषद को नियंत्रित करती है। 
  • सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लोकसभा में पारित किया जा सकता है। पारित होने पर प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से इस्तीफा देने के लिये बाध्य है । व  प्रधानमंत्री सहित सभी मंत्रियों को पद छोड़ना पड़ता है ।राज्यसभा के पास ऐसे अधिकार नहीं है और इसलिए कार्यपालिका पर उसका कोई वास्तविक अधिकार नहीं है। भारत के संविधान के अनुसार  केंद्रीय मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति उत्तरदायी  है परन्तु राज्यसभा के प्रति नहीं है ।
  • धन विधेयक मे लोकसभा के पास अधिक शक्तियाँ होती हैं। धन विधेयक केवल लोकसभा में पेश कर पारित होने के बाद उन्हें राज्यसभा में भेजा जाता है, जहाँ 14 दिनों तक विचार-विमर्श किया जा सकता है। अगर राज्यसभा द्वारा अस्वीकार नहीं किया जाता है, या सदन द्वारा कोई कार्रवाई किए बिना राज्यसभा में विधेयक पेश किए जाने के 14 दिन बीत जाते हैं, या राज्यसभा द्वारा की गई सिफारिशें लोकसभा द्वारा स्वीकार नहीं की जाती हैं, तो विधेयक पारित माना जाता है।अर्थात राज्यसभा इसे केवल 14 दिनों तक विलंबित कर सकती है या इसमें परिवर्तन का सुझाव दे सकती है लोकसभा इन परिवर्तनों को स्वीकार कर सकती है या नहीं  कर सकती है। लोकसभा सरकार का बजट या कोई अन्य धन संबंधी कानून पारित कर देती है, तो राज्यसभा उसे अस्वीकार नहीं कर सकती।बजट भी  वित्त मंत्री द्वारा लोकसभा में राष्ट्रपति के नाम पेश किया जाता है।
  • गैर-वित्तीय (साधारण) विधेयकों को दोनों सदनों द्वारा पारित किया जाना चाहिए। विधेयक को एक सदन द्वारा पारित किए जाने के बाद इसे दूसरे सदन,(लोकसभा या राज्यसभा), में भेजा जाता है, जहां इसे अधिकतम 6 महीने तक रखा जा सकता है। यदि दूसरा सदन विधेयक को अस्वीकार कर देता है या उस सदन द्वारा कोई कार्रवाई किए बिना 6 महीने की अवधि बीत जाती है, या जिस सदन ने मूल रूप से विधेयक को प्रस्तुत किया था, वह दूसरे सदन के सदस्यों द्वारा की गई सिफारिशों को स्वीकार नहीं करता है, दोनों सदनों के बीच मतभेद की स्थिति में अंतिम निर्णय दोनों सदनों का संयुक्त सत्र बुलाकर लिया जाता है। जिसकी अध्यक्षता लोकसभा के अध्यक्ष करते हैं संविधान ने इस संबंध में दोनों सदनों को समान स्तर रखा है, परन्तु  यह लोकसभा की अधिक संख्याबल के कारण ऐसी बैठक में लोकसभा का दृष्टिकोण प्रबल होने की संभावना रहती है। 
  • संविधान संशोधन के लिए किसी भी विधेयक को आरंभ करने और पारित करने में राज्यसभा के  समान शक्तियाँ है (सदन की कुल सदस्यता के बहुमत और उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहुमत से)। 
  • राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव (सदन की दो-तिहाई सदस्यता द्वारा) आरंभ करने और पारित करने में राज्य सभा के साथ समान शक्तियाँ है।
  • सर्वोच्च न्यायालय और राज्य उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों (सदन की सदस्यता के बहुमत और उपस्थित और मतदान करने वाले कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा) के महाभियोग प्रक्रिया (हटाने के लिए प्रस्ताव आरंभ करने और पारित करने) में राज्य सभा के साथ समान शक्तियाँ, जिन्हें भारत के राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है।
  • किसी राज्य में युद्ध या राष्ट्रीय आपातकाल (दो-तिहाई बहुमत से) या संवैधानिक आपातकाल (साधारण बहुमत से) घोषित करने वाले प्रस्ताव को आरंभ करने और पारित करने में राज्य सभा के साथ समान शक्तियाँ है।
  • राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा से पहले या बाद में लोक सभा भंग हो जाती है, तो राज्य सभा एकमात्र संसद बन जाती है। इसे भंग नहीं किया जा सकता। यह लोक सभा पर एक सीमा है। राष्ट्रपति आपातकाल की घोषणा के तहत 1 वर्ष से अधिक अवधि तक पद पर बने रह सकते हैं और यदि उक्त घोषणा प्रभावी नहीं होती है, तो इसे घटाकर छह माह कर दिया जाएगा।

निष्कर्ष 

 लगभग सभी मामलों में लोकसभा, राज्यसभा से अधिक शक्तिशाली है। यहां तक कि उन मामलों में भी, जिनमें संविधान ने दोनों सदनों को समान स्तर प्राप्त है, लोकसभा का अपनी अधिक संख्या के कारण अधिक प्रभावी है। संसदीय लोकतंत्रों कें निचला सदन ऊपरी सदन से अधिक शक्तिशाली होता है।


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