अपराध के प्रकार तथा स्तर



अपराध के प्रकार

अपराध की प्रकृति के अनुसार अपराध दो प्रकार के होते हैं ।

  •  संज्ञेय अपराध
  •  असंज्ञेय अपराध

 भारतीय दंड संहिता में अपराध को तीन भागों में बांटा गया है ।

  •  राज्य के विरुद्ध अपराध
  •  मानव शरीर के विरुद्ध अपराध
  •  संपत्ति के विरुद्ध अपराध

अपराध के स्तर 

अपराध के मूल रुप से तीन स्तर होते है । यदि कोई अपराध अचानक  या अपरिहार्य र्दुघटना के रुप मे घटित होता है तो उसको इन स्तरो से हो कर नही गुजरना पडता है इसलिये अपरिहार्य दुर्घटना को एक सफल बचाव या अपवाद माना जाता है । जानबूझ कर किये गये अपराध मे अपराधी निम्न स्तरो से गुजरता है 

  • आशय
  • तैयारी
  • प्रयत्न
  • अपराध का निष्पादन 

आशय 

अपराध के पीछे आशय अवश्य होता है। बिना आशय के अपराध को दुर्घटना माना जाता है । दुर्घटना के कारण क्षति दायित्व के विरुदघ सफल बचाव है । अपराधिक विधि मेे आशय से तात्पर्य दुराशय से है । आशय की परिभाषा के सन्दर्भ मे कहा जा सकता है कि अपराधी मानव मन से किसी कार्य को करने की भवना ही दुराशय है । आशय किसी कार्य की प्रथम अवस्था है जिसके पीछे कोई न कोइ्र कारण होता है । वैमन्यस्ता, अपमानित होना, मुकदमे मे पराजित होना ।

आशय का आस्तित्व ही अपराध का निश्चित सबूत नही होता है तथा आशय  का महात्व किसी कार्य के होने या अपराध के घटित हो जाने के पश्चात होता है  क्योकि अपराघ किये जाने के पूर्व कोई भी व्यक्ति अपने आशय केा परिवर्तन कर सकता है । परन्तु आपराधिक षडयन्त्र इसका अपवाद है क्याकि आपराधिक षडयन्त्र मे केवल आशय ही दण्डनीय होता है कार्य किया जाना आवश्यक नही होता है 

तैयारी

किसी अपराध को किये जाने के लिये द्वितीय स्तर है जब तक किसी के मन मे कोई कार्य या अपराध करने का आशय बनता है उस आशय को पूरा करने की तैयारी करने हेतु वह प्रेरित होता है । परन्तंु यह स्मरणीय है कि तैयारी अपने आप मे दण्डनीय नही है तैयारी का महात्व अपराघ घटित हो जाने के बाद होता है । तैयारी के पश्चात व्यकित प्रयास करता है तैयारी व प्रयास मे मुख्य अन्तर यह है कि तैयारी अपराध करने लिये साधन जुटाने केा कहा जाता है जबकि प्रयास से अपराधी अपराध करना प्रारम्भ कर चुका होता है तैयारी के पश्चात पश्चायाताप करने के अवसर होता है इसलिये तैयारी अपनेआप मे दण्डनीय नही है । कुछ अपराध जैसे आपराधिक षडयन्त्र या जालसाजी के अपराध को छोडकर परन्तु प्रयास से चूकि अपराघ का आरम्भ हो चुका होता है अतः प्रयास दण्डनीय है ।

हत्या के लिये साघन जुटाना, हंत्या करने के आशय से गिरोह एकत्रित करना, गृहभेदन के लिये औजार एकत्रित करना, आग लगाने के आशय से माचिस पेट्रोल किरोसिन कपडे के चीथडे एकत्रित करना आदी ।

आर बानाम रामक्का 1988 वाद मे एक महिला आत्म हत्या के प्रयास मे कुये की ओर दौडी पर कूदने के पहले पकड ली गयी निर्णय हुआ कि महिला आत्महत्या के प्रयास की दोषी नही है क्याकि वो अपना विचार बदल सकती थी ।

प्रयास 

अपराध कारित करने के लिये आशय तथा तैयारी के पश्चात तीसरा स्तर का प्रयास है आशय तथा तैयारी स्वम मे दण्डनीय नही है । चूकि आशय तथा तैयारी के पश्चात भी अपराधी को पश्चाताप के अवसर होते है आशय तथा तैयारी के पश्चात भी व्यक्ति अपना इरादा बदल सकता है । परन्तु प्रयास तैयारी के पश्चात की स्थिति  दण्डनीय है ।

कोई कार्य या प्रयत्न या तैयारी इसकी कसौटी यह है कि यदि अभियुक्त द्वारा आगे कुछ न करने पर कार्य दण्डनीय है तो यह माना जायेगा कि अीभियुक्त द्वारा जो कुछ किया गया है यह प्रयास की स्थित है ।

तैयारी का स्तर पूरा होने के पश्चात प्रयास या प्रयत्न का स्तर प्रारम्भ हाूता है । प्रयास या प्रयत्न अपराध करने की दिशा मे प्रथम कदम होता है ।

यदि प्रयत्न की दिशा मे कुछ किया गया है तो अभियुक्त दायित्व से इसलिये मुक्त नही हो पायेगा कि उसने प्रयास करने के पश्चात अपराघ करने का अपना इरादा बदल दिया था ।

भारतीय दण्ड सहिता मे प्रयास धरा 307 मे हत्या के प्रयास, धारा 308 आपराधिक मानव वध करने के प्रयास मे, धारा 309 मे आत्महत्या करने के प्रयास धारा 393 मे लूट करने के प्रयास मे प्रथक अपराध के रुप मे मान्यता दी गयी है ।


नंरगराम बानाम राजस्थान राज्य 1979 के वाद मे अ ने एक महिला के साथ बलात्कार करना चाहा, से लिये अ ने उस महिला के साथ बलपूर्वक प्रयत्न किया परन्तु उस महिला द्वारा प्रतिरोध किये जाने के कारण इन्द्रीय प्रवेश न कर सका निर्णय हुआ कि अ बालात्कार के प्रयत्न का दोषी था ।

प्रयास, प्रयत्न व तैयारी मे अन्तर

प्रयास, प्रयत्न व तैयारी मे अन्तर बहुत सूक्ष्म है तथा इस विषय मे अवधरणा प्रत्येक मामले के तथ्यो पर की जानी चाहिये । फिर भी कुछ अन्तर को निम्न रुप से आलेखित है ।

तैयारी का तात्पर्य किसी अपराध को करने हेतु साधनो को एकत्र करना है जबकि प्रयास अपराध करने की चेष्टा है ।

तैयारी अपनेआप मे कोई अपराध नही है परन्तु प्रयास आपराधिक कार्यो के साक्ष्य हाने के कारण अपराघ माना जाता है ।

अपराघ का निष्पादन

अपराघ का निष्पादन कृत्य का अन्तिम चरण है । यह वह चरण है जिसके पश्चात कुछ करना शेष नही रहता । अपराध के निष्पादन तक अपराध के सभी चरण समाप्त हो जाते है तथा अपराध घटित होने पर किसी अन्य व्यक्ति को क्षति होती है तथा इसका पूर्ण दायित्व अपराघी पर होता है । अपराघ पूर्ण हो जाने पर दण्ड का भागी होता है 

अपराध के चारो स्तरो का उदाहरण निम्न है ।

क और ख के मध्य एक खेत को लेकर विवाद चल रहा है मुकदमेबाजी मे का की  हार हो जाती है  तथा खेत पर क का कब्जा हटवाने तथा न्यायलय के निणर्य को निष्पादित करवाने हेतु ख द्वारा कार्यवाही की जाती है क और ख के मध्य वैमनस्यता बढ जाती है इससे ख को मारने हेतु क के मन मे आशय जन्म लेता है । इसके पश्चात क के परिवार के सदस्य आपस मे राय करके कुछ और व्यक्तियो को ख को मारने के लिये योजना बनाते है तथा क इस दिशा मे अग्रसर होकर कुछ हथियार इकठठा करता है । वे लोग अवसर तलाशते है तथा आपस मे हत्या को अंजाम देने के लिये प्रत्येक सदस्य को क्या करना है इसकी योजना बनाते है । यह तैयारी का स्तर है इसके पश्चात क का एक साथी योजना के अनुसार ख को घटना स्थल तक लाने मे सफल होता है तथा क और कुछ और लोग ख पर लाठी डन्डा से हमला बोल देते है यह प्रयास है । इसी बीच पुलिस कार गुजरती है तथा क और उसका साथी गिरफतार होता है तथा कुछ भागने मे सफल होते है । यदि पुलिस न आती तो क और उसके साथी ख की हत्या करने मे सफल हो जाते तथा अपराध का अन्तिम चरण निष्पादित हो जाता ।

तैयारी कब दण्डनीय है 

1. भारत सरकार के विरुध युö की तैयारी करना धारा 122 

2. भारत सरकार के साथ शान्ति रखने वाले राष्ट्र मे आतंक फैलाने की तैयारी करना । धारा 126

3. कूट सिक्के बनाना धारा 233ए धारा 235

4. डकैती की तैयारी करना धारा 399

5. अपराधिक षडयन्त्र के अपराध के लिये तैयारी की पूवै स्थिति मे आशय मात्र दण्डनीय है ।


 

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