भारतीय अपकृत्य ( टॉर्ट) कानून क्या है

डा. लोकेश शुक्ल  कानपुर 9450125954

भारतीय अपकृत्य  ( टॉर्ट) कानून  





        टॉर्ट शब्द लैटिन भाषा के टार्टम से उत्पति है जो अग्रेजी भाषा के रांग शब्द का समानार्थी है । हिन्दी भाषा मे इसे  अपकृत्य, तोडना या मरोडना कहते है । अपकृत्य कानून काफी प्राचीन है। इसका उल्लेख नारद, व्यास, बृहस्पति तथा कात्यायन  स्मृति आदी ग्रंथों में हैं । सर्वप्रथम नारमन विधिवेताओ ने इस शब्द का प्रयोग किया था ।

        अपकृत्य सम्बन्धी दायित्व सविदा भंग से भिन्न ऐसा दायित्व है जो सामन्यता कानूनी कर्तव्यो का पालन न करने के कारण उत्पन्न होता है और उसका उपचार क्षतिपूतिै दे कर हो सकती है ।

        भारतीय अपकृत्य  कानून अंग्रेजी कानून से लिया गया है । भारतीय अपकृत्य  कानून मुख्य रूप से अन्य सामान्य कानूनो की तरह सिविल प्रक्रिया से पालन किया जाता है तथा सामान्य कानून की तरह एक गैर-संविदात्मक कर्तव्य के उल्लंघन के लिये जिस व्यक्ति के साथ अन्याय हुआ क्षतिपूर्ति का उपाय प्रदान करना है 

        अपकृत्य एक सिविल क्षति या अपकार है जिसका प्रतिकार क्षतिपूर्ति के द्वारा संभव है है। अपकृत्य मे संविधान का उल्लंघन, अपराध, संविदा भंग,  कानून भंग, या अन्य सामयिक सीमाओ का उलंधन नहीं है। जाने या अनजाने में किए गए हानिकारक आचरण के लिए  व्यक्ति जवाबदेह होता है। नुकसान के लिए  मुआवजा दिया जाता है। अपकृत्य  में शारीरिक या भावनात्मक पीड़ा, संपत्ति की क्षति या हानि, और अतीत या भविष्य की असुविधाजनक घटनाओं से होने वाली वित्तीय हानि शामिल होती है। अदालत हर्जाने के रूप में मुआवजे की राशि निर्धारित करती है। 

        सामान्य व अपकृत्य कानून की प्रकृति समान है,  न्यायालयों मे देश के अलावा यू. के., ऑस्ट्रेलिया, और कनाडा, जैसे अन्य देशो की कानून प्रणाली का संदर्भ लिया जाता है। साथ ही स्थानीय मानदंडों और स्थितियों के साथ-साथ भारत के संवैधानिक ढाँचे पर भी ध्यान दिया जाता है। विधायिका ने कुछ सामाजिक स्थितियों के लिए अन्य देशों की तरह, अपकृत्य कानून के पहलुओं को संहिताबद्ध किया  है। 

        आचरण जो अपकृत्य कानून के तहत कार्रवाई के कारण हैं, उन्हें भारतीय दंड संहिता, या अन्य आपराधिक कानून द्वारा आपराधिक है। अपकृत्य  अपराध है, राज्य अभियोजन पीडित पक्ष को अपकृत्य कानून के तहत उपाय की माँग करने से नहीं रोकता है।  सामान्य व अपकृत्य  कानूनो के मध्य समाजस्य करके अपकृत्य करने वाले को जवाबदेह और परिणामस्वरूप नुकसान की भरपाई के लिए पीडित पक्ष द्वारा सीधे कार्रवाई की जाती है, जबकि आपराधिक कानून का उद्देश्य समाज हितों के खिलाफ समझे जाने वाले आचरण को दंडित करना और रोकना है।  इस प्रकार आपराधिक कार्रवाई राज्य द्वारा की जाती है और दंड में कारावास, जुर्माना आदी शामिल है।

        भारत में अधिकांश सामान्य कानूनो की तरह, अपकृत्य  साक्ष्यं व मानक संभावनाओं का संतुलन है ।यह आपराधिक कानून के लिये इस्तेमाल किए जाने मानक या अमेरिकी मे अपकृत्य  न्यााय में प्रयोग किए जाने वाले साक्ष्य मानक की सार्थकता के विपरीत है । भारतीय आपराधिक कानून में निर्दोषता की संवैधानिक धारणा के समान अपकृत्य  मे भी साक्ष्य का महात्वपूर्ण  स्थान है। भारत एशिया और अफ्रीका के अधिकांश सामान्य कानून की तरह सिविल या आपराधिक मुकदमों में जूरी की अनुमति नहीं देता है वहीे अमेरिका, कनाड,  इंग्लैंड, वेल्स व न्यूजीलैंड आदी देश  सामान्य कानून के  साथ-साथ सीमित अपकृत्य कार्यों में जूरी की अनुमति देते हैं। 


एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने