संविधान की प्रस्तावना का स्पष्टीकरण

डा. लोकेश शुक्ल  कानपुर 9450125954

 सामान्य परिचय

प्रस्तावना संविधान के परिचय अथवा भूमिका को कहते हैं संविधान के लिए प्रस्तावना का अवश्यक नही है, परन्तु है  वह संविधान के मूल उद्देश्य का  सार स्पष्ट करती है। लिखित संविधान मे प्रस्तावना लिखी होती परन्तु अलिखित संविधान मे नही होती है।भारत के संविधान मे प्रस्तावना है जबकि अलिखित ब्रिटेन के संविधान मे प्रस्तावना नही है

भारतीय संविधान की प्रस्तावना पंडित नेहरू द्वारा पेश किये गए ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ पर आधारित है।   


संविधान की प्रस्तावना का स्पष्टीकरण


संविधान की प्रस्तावना एवं इसमें निहित शब्दों के अर्थ

“हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्त्व-संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिये तथा इसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिये तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता तथा अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिये  दृढ़ संकल्पित होकर अपनी इस संविधान सभा में आज दिनांक 26 नवंबर, 1949 ई. को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।”

42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा इसमें समाजवादी, पंथनिरपेक्ष और अखंडता  शब्दों को याोजित किया गया।

प्रस्तावना में उल्लेखित मुख्य शब्द

हम भारत के लोग

भारत एक लोकतांत्रिक देश है तथा भारत के लोग ही सर्वोच्च संप्रभु है, अतः भारतीय जनता को जो अधिकार मिले हैं वही संविधान का आधार है । भारतीय संविधान भारतीय जनता को समर्पित है।

संप्रभुता

भारत किसी देश पर निर्भर नही है और न ही किसी अन्य देश का डोमिनियन है। इसके ऊपर और कोई शक्ति नहीं है और यह अपने आंतरिक और बाहरी मामलों का निस्तारण करने के लिए स्वतंत्र हैं।

समाजवादी- 

समाजवादी शब्द का आशय ऐसी संरचना है जिसमें उत्पादन के मुख्य साधनों, पूँजी, जमीन, संपत्ति आदि पर सार्वजनिक स्वामित्व या नियंत्रण के साथ वितरण में  समतुल्य सामंजस्य हो।

पंथनिरपेक्ष

‘पंथनिरपेक्ष राज्य’ शब्द का स्पष्ट रूप से संविधान में उल्लेख नहीं था परन्तु संविधान के निर्माता ऐसे ही राज्य की स्थापना करने चाहते थे। संविधान में अनुच्छेद 25 से 28 (धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार) जोड़े गए। भारतीय संविधान में पंथनिरपेक्षता की सभी अवधारणाएँ विद्यमान हैं अर्थात् हमारे देश में सभी धर्म समान हैं और उन्हें सरकार का समान समर्थन प्राप्त है।

लोकतांत्रिक

संविधान की प्रस्तावना में लोकतांत्रिक शब्द का इस्तेमाल वृहद् रूप से किया है, जिसमें न केवल राजनीतिक लोकतंत्र बल्कि सामाजिक व आर्थिक लोकतंत्र भी शामिल है । व्यस्क मताधिकार, समाजिक चुनाव, कानून की सर्वोच्चता, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, भेदभाव का अभाव भारतीय राजव्यवस्था के लोकतांत्रिक लक्षण हैं।

गणतंत्र

प्रस्तावना में ‘गणराज्य’ प्रचलित लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं ‘वंशागत लोकतंत्र’ तथा ‘लोकतंत्रीय गणतंत्र’ में से भारतीय संविधान के अंतर्गत लोकतंत्रीय गणतंत्र चुनता है।

गणतंत्र में राज्य प्रमुख हमेशा प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से एक निश्चित समय के लिये चुनकर आता है। गणतंत्र के अर्थ में दो और बातें शामिल हैं। 

पहली यह कि राजनीतिक संप्रभुता किसी एक व्यक्ति जैसे राजा के हाथ में होने के स्थान पर नागरिको के हाथ में होती हैं। 

दूसरी यह कि किसी भी विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग की अनुपस्थिति। इसलिये हर सार्वजनिक कार्यालय बगैर किसी भेदभाव के प्रत्येक नागरिक के लिये खुला होगा।

स्वतंत्रता

स्वतंत्रता का तात्पर्य नागरिक स्वतंत्रता से है। स्वतंत्रता के अधिकार का इस्तेमाल संविधान में लिखी सीमाओं के भीतर किया जा सकता है। यह नागरिको को विकास के लिये समान अवसर प्रदान करता है।

न्याय

न्याय का भारतीय संविधान की प्रस्तावना में उल्लेख है, जिसे तीन भिन्न रूपों में देखा जा सकता है- सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक न्याय।

सामाजिक न्याय से अभिप्राय है कि मानव-मानव के बीच जाति, वर्ण के आधार पर भेदभाव न माना जाए और प्रत्येक नागरिक को उन्नति के समान समुचित अवसर सुलभ हो।

आर्थिक न्याय का अर्थ है कि उत्पादन एवं वितरण के साधनों का न्यायोचित वितरण हो और संप्रदा केंद्रीकृत ना हो जाए।

राजनीतिक न्याय का अभिप्राय है कि राज्य के अंतर्गत समस्त नागरिकों को समान रूप से नागरिक और राजनीतिक अधिकार प्राप्त हो, चाहे वह राजनीतिक दफ्तरों में प्रवेश की बात हो अथवा अपनी बात सरकार तक पहुँचाने का अधिकार।

समता

भारतीय संविधान की प्रस्तावना मे हर नागरिक को समान अवसर प्रदान करती हैं समाज के किसी भी वर्ग के लिए विशेषाधिकार नही है और बिना भेदभाव के हर व्यक्ति को समान अवसर उपलब्ंध है।

बंधुत्व

प्रस्तावना के अनुसार बंधुत्व में दो बातों को सुनिश्चित है। पहला व्यक्ति का सम्मान और दूसरा देश की एकता और अखंडता। मौलिक कर्तव्य में भी भाईचारे की भावना को प्रोत्साहित करने की बात कही गई है।


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