भारत के संविधान की प्रस्तावना |
संविधान की प्रस्तावना का सामान्य परिचय
प्रत्येक लेखन के आरम्भ मे प्रस्तावना होती है जिसमे लेखन का उद्वेश्य परलक्क्षित होता है । भारत के संविधान के आलोक मे न्यायमूर्ति सुब्बाराव के अनुसार प्रस्तावना किसी अधिनियम के मुख्य आर्दशो तथा आकांक्षाओ का उल्लेख करती है । प्रस्तावना अधिनियम के उद्वेश्य तथा नीतियो को समक्षने मे सहायक होती है । इनरी बेरुबारी यूनियन ए. आई. आर. 1960 सु. को 845 नामक वाद मे उच्चतम न्ययालय ने यही कहा कि प्रस्तावना संविधान के र्निमाताओ के विचारो को जानने की कुजी है ।
भारत के संविधान की प्रस्तावना निम्न है
हम भारत के लोग, भारत को एक अखण्ड प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को न्याय, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा, उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढाने के लिए, दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई0 को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।
यह प्रस्तावना निम्न निर्देशित करती है
यह सविधान का स्त्रोत, उद्वेश्य और किस तिथि को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित किया गया था ।