• रोशनआरा बेगम बनाम एस.के. सलाहुद्दीन केस पर आधारित
• तलाक के बाद महिलाओं को विवाह के सभी उपहार वापस पाने का कानूनी अधिकार है।
• पति आदेश का पालन नहीं करेगा, तो उसे 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ भुगतान करना होगा।
• महत्वपूर्ण कानूनी जीत है, जो उनकी आर्थिक सुरक्षा और गरिमा को सुनिश्चित करता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 1986 का मुस्लिम महिला अधिकार कानून महिलाओं की आर्थिक सुरक्षा को ध्यान में रखकर बनाया गया है| शादी में मिले सभी गिफ्ट- कैश, सोना, प्रॉपर्टी- महिला की अपनी संपत्ति माने जाते हैं। . कोर्ट का फैसला तलाक के बाद भी महिला इन गिफ्टस को वापस मांगने का पूरा अधिकार रखती है।सुप्रीम कोर्ट का फैसला मुस्लिम महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण कानूनी जीत है, जो तलाक के मामले में उन्हें उनके शादी के समय प्राप्त उपहार, सोना, और नकदी वापस पाने का अधिकार देता है। यह निर्णय रोशनआरा बेगम बनाम एस.के. सलाहुद्दीन केस पर आधारित है, जिसमें कोर्ट ने कहा कि एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला अपने पूर्व पति से शादी के समय मिले सभी उपहार, दहेज और मेहर (Mehr) वापस मांगने की हकदार है।
मुख्य बातें:
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला, मुस्लिम महिलाओं के लिए एक आशा की किरण है। यह आदेश उन्हें उनके अधिकारों को पुनर्स्थापित करने में मदद करेगा और समाज में व्याप्त पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण के खिलाफ मजबूती से खड़ा करेगा।
कानूनी अधिकार: सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि तलाक के बाद महिलाओं को उनके विवाह के दौरान प्राप्त सभी उपहार, सोने के गहने, कैश और अन्य सामान वापस पाने का पूरा कानूनी अधिकार है।
सामाजिक न्याय: कोर्ट ने कहा कि महिलाओं के अधिकारों का संरक्षण केवल एक कानूनी प्रक्रिया नहीं, बल्कि उनके सामाजिक स्थिति और गरिमा की रक्षा करना भी है। इस निर्णय का उद्देश्य महिलाओं के लिए आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
विपरीत निर्णय रद्द: पहले कलकत्ता हाई कोर्ट ने पति को राहत देते हुए कहा था कि उपहारों को वापस नहीं मांगा जा सकता, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलटते हुए कहा कि यह कानून महिलाओं की गरिमा और अधिकारों को ठेस पहुंचाने वाला है。
अर्थिक दंड: अगर पति आदेश का पालन नहीं करेगा, तो उसे 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से भुगतान करना होगा। कोर्ट ने पूर्व पति को 6 सप्ताह के भीतर 17.67 लाख रुपये और 30 तोला सोने की रकम पत्नी के खाते में डालने का आदेश दिया है。
अदालत ने इस निर्णय से यह स्पष्ट किया है कि भले ही दूल्हे को उपहार दिए गए हों, लेकिन वे दुल्हन की संपत्ति मानी जाएंगी और इसलिए, तलाक होने पर उन्हें लौटाना होगा। यह कदम महिलाओं की गरिमा और आर्थिक सुरक्षा को सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण है।
फैसला मुस्लिम महिलाओं के लिए एक कानूनी और सामाजिक संरचना में महत्वपूर्ण बदलाव लाने का कार्य करेगा, विशेषतः ऐसे मामलों में जहाँ महिलाएं अपनी संपत्ति को वापस पाने के लिए संघर्ष करती हैं।
मुख्य बातें:
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला, मुस्लिम महिलाओं के लिए एक आशा की किरण है। यह आदेश उन्हें उनके अधिकारों को पुनर्स्थापित करने में मदद करेगा और समाज में व्याप्त पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण के खिलाफ मजबूती से खड़ा करेगा।
कानूनी अधिकार: सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि तलाक के बाद महिलाओं को उनके विवाह के दौरान प्राप्त सभी उपहार, सोने के गहने, कैश और अन्य सामान वापस पाने का पूरा कानूनी अधिकार है।
सामाजिक न्याय: कोर्ट ने कहा कि महिलाओं के अधिकारों का संरक्षण केवल एक कानूनी प्रक्रिया नहीं, बल्कि उनके सामाजिक स्थिति और गरिमा की रक्षा करना भी है। इस निर्णय का उद्देश्य महिलाओं के लिए आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
विपरीत निर्णय रद्द: पहले कलकत्ता हाई कोर्ट ने पति को राहत देते हुए कहा था कि उपहारों को वापस नहीं मांगा जा सकता, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलटते हुए कहा कि यह कानून महिलाओं की गरिमा और अधिकारों को ठेस पहुंचाने वाला है。
अर्थिक दंड: अगर पति आदेश का पालन नहीं करेगा, तो उसे 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से भुगतान करना होगा। कोर्ट ने पूर्व पति को 6 सप्ताह के भीतर 17.67 लाख रुपये और 30 तोला सोने की रकम पत्नी के खाते में डालने का आदेश दिया है。
अदालत ने इस निर्णय से यह स्पष्ट किया है कि भले ही दूल्हे को उपहार दिए गए हों, लेकिन वे दुल्हन की संपत्ति मानी जाएंगी और इसलिए, तलाक होने पर उन्हें लौटाना होगा। यह कदम महिलाओं की गरिमा और आर्थिक सुरक्षा को सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण है।
फैसला मुस्लिम महिलाओं के लिए एक कानूनी और सामाजिक संरचना में महत्वपूर्ण बदलाव लाने का कार्य करेगा, विशेषतः ऐसे मामलों में जहाँ महिलाएं अपनी संपत्ति को वापस पाने के लिए संघर्ष करती हैं।
• तलाक के बाद महिलाओं को विवाह के सभी उपहार वापस पाने का कानूनी अधिकार है।
• पति आदेश का पालन नहीं करेगा, तो उसे 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ भुगतान करना होगा।
• महत्वपूर्ण कानूनी जीत है, जो उनकी आर्थिक सुरक्षा और गरिमा को सुनिश्चित करता है।
कानपुर 07 दिसम्बर 2025
नई दिल्ली: 06 दिसम्बर 2025:सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 1986 का मुस्लिम महिला अधिकार कानून महिलाओं की आर्थिक सुरक्षा को ध्यान में रखकर बनाया गया है| शादी में मिले सभी गिफ्ट- कैश, सोना, प्रॉपर्टी- महिला की अपनी संपत्ति माने जाते हैं। . कोर्ट का फैसला तलाक के बाद भी महिला इन गिफ्टस को वापस मांगने का पूरा अधिकार रखती है।सुप्रीम कोर्ट का फैसला मुस्लिम महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण कानूनी जीत है, जो तलाक के मामले में उन्हें उनके शादी के समय प्राप्त उपहार, सोना, और नकदी वापस पाने का अधिकार देता है। यह निर्णय रोशनआरा बेगम बनाम एस.के. सलाहुद्दीन केस पर आधारित है, जिसमें कोर्ट ने कहा कि एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला अपने पूर्व पति से शादी के समय मिले सभी उपहार, दहेज और मेहर (Mehr) वापस मांगने की हकदार है।
मुख्य बातें:
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला, मुस्लिम महिलाओं के लिए एक आशा की किरण है। यह आदेश उन्हें उनके अधिकारों को पुनर्स्थापित करने में मदद करेगा और समाज में व्याप्त पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण के खिलाफ मजबूती से खड़ा करेगा।
कानूनी अधिकार: सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि तलाक के बाद महिलाओं को उनके विवाह के दौरान प्राप्त सभी उपहार, सोने के गहने, कैश और अन्य सामान वापस पाने का पूरा कानूनी अधिकार है।
सामाजिक न्याय: कोर्ट ने कहा कि महिलाओं के अधिकारों का संरक्षण केवल एक कानूनी प्रक्रिया नहीं, बल्कि उनके सामाजिक स्थिति और गरिमा की रक्षा करना भी है। इस निर्णय का उद्देश्य महिलाओं के लिए आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
विपरीत निर्णय रद्द: पहले कलकत्ता हाई कोर्ट ने पति को राहत देते हुए कहा था कि उपहारों को वापस नहीं मांगा जा सकता, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलटते हुए कहा कि यह कानून महिलाओं की गरिमा और अधिकारों को ठेस पहुंचाने वाला है。
अर्थिक दंड: अगर पति आदेश का पालन नहीं करेगा, तो उसे 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से भुगतान करना होगा। कोर्ट ने पूर्व पति को 6 सप्ताह के भीतर 17.67 लाख रुपये और 30 तोला सोने की रकम पत्नी के खाते में डालने का आदेश दिया है。
अदालत ने इस निर्णय से यह स्पष्ट किया है कि भले ही दूल्हे को उपहार दिए गए हों, लेकिन वे दुल्हन की संपत्ति मानी जाएंगी और इसलिए, तलाक होने पर उन्हें लौटाना होगा। यह कदम महिलाओं की गरिमा और आर्थिक सुरक्षा को सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण है।
फैसला मुस्लिम महिलाओं के लिए एक कानूनी और सामाजिक संरचना में महत्वपूर्ण बदलाव लाने का कार्य करेगा, विशेषतः ऐसे मामलों में जहाँ महिलाएं अपनी संपत्ति को वापस पाने के लिए संघर्ष करती हैं।
मुख्य बातें:
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला, मुस्लिम महिलाओं के लिए एक आशा की किरण है। यह आदेश उन्हें उनके अधिकारों को पुनर्स्थापित करने में मदद करेगा और समाज में व्याप्त पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण के खिलाफ मजबूती से खड़ा करेगा।
कानूनी अधिकार: सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि तलाक के बाद महिलाओं को उनके विवाह के दौरान प्राप्त सभी उपहार, सोने के गहने, कैश और अन्य सामान वापस पाने का पूरा कानूनी अधिकार है।
सामाजिक न्याय: कोर्ट ने कहा कि महिलाओं के अधिकारों का संरक्षण केवल एक कानूनी प्रक्रिया नहीं, बल्कि उनके सामाजिक स्थिति और गरिमा की रक्षा करना भी है। इस निर्णय का उद्देश्य महिलाओं के लिए आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
विपरीत निर्णय रद्द: पहले कलकत्ता हाई कोर्ट ने पति को राहत देते हुए कहा था कि उपहारों को वापस नहीं मांगा जा सकता, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलटते हुए कहा कि यह कानून महिलाओं की गरिमा और अधिकारों को ठेस पहुंचाने वाला है。
अर्थिक दंड: अगर पति आदेश का पालन नहीं करेगा, तो उसे 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से भुगतान करना होगा। कोर्ट ने पूर्व पति को 6 सप्ताह के भीतर 17.67 लाख रुपये और 30 तोला सोने की रकम पत्नी के खाते में डालने का आदेश दिया है。
अदालत ने इस निर्णय से यह स्पष्ट किया है कि भले ही दूल्हे को उपहार दिए गए हों, लेकिन वे दुल्हन की संपत्ति मानी जाएंगी और इसलिए, तलाक होने पर उन्हें लौटाना होगा। यह कदम महिलाओं की गरिमा और आर्थिक सुरक्षा को सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण है।
फैसला मुस्लिम महिलाओं के लिए एक कानूनी और सामाजिक संरचना में महत्वपूर्ण बदलाव लाने का कार्य करेगा, विशेषतः ऐसे मामलों में जहाँ महिलाएं अपनी संपत्ति को वापस पाने के लिए संघर्ष करती हैं।
